भोपाल । उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल ने कहा कि गौ-वंश के बेहतर प्रबंधन से अर्थव्यवस्था को सशक्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि गौ-वंश हर वक्त लाभप्रद हैं। दुग्ध और दुग्ध प्रोसेस्ड उत्पादों के साथ, गौ-मूत्र और गोबर से भी कई तरीक़े उत्पाद बनाये जा सकते हैं जो गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं। उप मुख्यमंत्री ने कहा कि गौ-वंश का आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक महत्व है। गौ-संरक्षण और गौ-सेवा की भावना जन-जन में विकसित करना महत्वपूर्ण है। उप मुख्यमंत्री ने बुधवार को कुशाभाउ ठाकरे सभागृह भोपाल में ‘ग़ौ-रक्षा संवाद’ निराश्रित गौ-वंश एवं गौशालाओं के बेहतर प्रबंधन पर हितग्राहियों की कार्यशाला का उद्घाटन किया।
उप मुख्यमंत्री शुक्ल ने कहा कि गौशालाओं के प्रबंधन में अधोसंरचना विकास के साथ मानव संसाधन (गौ-सेवक) की व्यवस्था महत्वपूर्ण घटक है। इसके साथ ही विभिन्न उत्पादों के निर्माण और विपणन की बेहतर व्यवस्था गौशालाओं को आर्थिक मज़बूती देने के लिए आवश्यक है। उप मुख्यमंत्री ने बसामन मामा गौ-वंश वन्य विहार रीवा में किए जा रहे प्रयासों से उपस्थित जनों को अवगत कराया। उन्होंने कहा कि गौशालाओं के बेहतर प्रबंधन से गौ-वंश का संरक्षण और संवर्धन सुनिश्चित होगा साथ ही रोज़गारों का सृजन होगा। उप मुख्यमंत्री ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा गौ-सेवा के अभिनव प्रयास के लिये आभार व्यक्त किया।
गौ-रक्षा और गौशालाओं के बेहतर प्रबंधन पर प्राप्त सुझाव, गौ-सेवा में सहयोगी होंगे : पशुपालन मंत्री पटेल
पशुपालन मंत्री लखन पटेल ने कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में कहा कि गौ-रक्षा और गौशालाओं के बेहतर प्रबंधन पर प्राप्त सुझाव, गौ-सेवा में सहयोगी होंगे। उन्होंने कहा कि शासन का लक्ष्य है कि कोई भी गौ-वंश निराश्रित न हो, दुर्घटना का शिकार न हो। गौ-वंश के संरक्षण के साथ बेहतर पोषण की व्यवस्था बने। गौशालाओं के स्वावलंबन, प्रशासनिक, वित्तीय, सामाजिक तथा विधिक विषयों व प्रावधानों पर कार्यशाला में मंथन किया जाकर कार्ययोजना का निर्माण किया जायेगा। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में गौ-सेवा, गौ-पोषण और संवर्धन के क्षेत्र में ठोस कार्य किये जायेंगे।
निराश्रित गौ-वंश के संरक्षण, गौशाला संचालन, उत्पादों के विपणन और शासकीय सहयोग के विभिन्न विषयों पर किया जायेगा विचार-विमर्श
प्रमुख सचिव पशुपालन गुलशन बामरा ने बताया कि कार्यशाला के विभिन्न सत्रों में गौवंश क्षमता अनुसार गौशालाओं का श्रेणीकरण एवं प्रबंधन, आदर्श गौशाला के लिये आवश्यक अधोसंरचना, भूमि, शेड, गोदाम, बिजली, पानी, यंत्र/उपकरण आदि और मानव संसाधन की व्यवस्था के निर्धारण पर मंथन किया जाएगा। गौवंश के उचित रखरखाव संबंधी बेस्ट प्रेक्टिसेस और गौशाला से जुड़े हितधारकों की क्षमता-वर्धन के संबंध में चर्चा की जाएगी। गौशालाओं में आय के विभिन्न स्रोतों से स्वावलंबन प्राप्त करने के लिए शासकीय सहयोग के प्रकार और प्रावधानों पर परामर्श किया जाएगा। साथ ही विभिन्न गौ-उत्पादों के उत्पादन और विपणन पर सुझाव प्राप्त किए जायेंगे। सीएसआर से गौशालाओं के प्रबंधन में सहयोग के विषय में चर्चा की जाएगी।
गौ-वंश संरक्षण के सामाजिक पहलुओं पर होगी वृहद् चर्चा
कार्यशाला में गौशालाओं से संबंधित सामाजिक पहलू, पशुपालकों द्वारा गौवंश को स्टॉल फीडिंग हेतु प्रोत्साहित करने के उपाय और घायल, निराश्रित गौवंश को निकटतम गौशालाओं तक पहुचाने हेतु परिवहन की व्यवस्था पर विमर्श किया जाएगा। साथ ही मृत गौवंश का सम्मानपूर्वक निष्पादन भी चर्चा का प्रमुख विषय है। इसके साथ ही गौशालाओं एवं निराश्रित गौवंश से संबंधित विधिक पहलू और गौवंश संरक्षण के संबंध में उच्चतम न्यायालय/उच्च न्यायालयों/ राष्ट्रीय हरित अधिकरण के निर्देश पर भी प्रकाश डालकर आवश्यक प्रबंधों पर चर्चा की जाएगी।
विभिन्न गौ-उत्पादों, गौ-वंश संरक्षण और संवर्धन संबंधी तकनीकों एवं साहित्य का प्रदर्शन कार्यशाला परिसर में किया गया। कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल, पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ वल्लभ भाई कथूरिया, महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानन्द गिरी, पूर्व सांसद राज्यसभा मेघराज जैन, विधायक हेमंत खंडेलवाल, स्वामी गोपालानंद सरस्वती, स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा संचालित उत्कृष्ट गौशालाओं के प्रतिनिधि, गौसेवा के क्षेत्र में कार्य कर रहे चिंतक, संस्थाओं और कॉरपोरेट जगत के प्रतिनिधि, वैज्ञानिक और शिक्षाविद उपस्थित रहे।