नई दिल्ली । देश के प्रमुख नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाजे जा चुके उत्तर प्रदेश के सामाजिक कार्यकर्ता उमाशंकर पाण्डेय 26 जनवरी को कर्तव्य पथ पर गणतंत्र दिवस परेड का साक्षी बनने से गदगद हैं। वह इस समारोह में केंद्र के सम्मानित अतिथि के रूप में शामिल हुए। उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि जल संचयन की पुरखों की विधि का सतत प्रचार करना है। अपने गांव जखनी (बांदा) रवाना होने से कुछ समय पहले आज पाण्डेय ने सामाजिक सरोकारों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भूमिका के संबंध में ‘हिन्दुस्थान समाचार’ से चर्चा की। उन्होंने कहा, ”मैं आज जो कुछ हूं प्रधानमंत्री मोदी की बदौलत हूं। अगर वो मेरा जिक्र ‘मन की बात’ में न करते तो मुझे कौन जानता। मेरी जल क्रांति प्रधानमंत्री के उत्साहवर्धन से ही संभव हो पाई है।” पाण्डेय ने कहा कि वह प्रसार भारती के निमंत्रण पर गणतंत्र दिवस परेड देखने आए। पहली बार 26 जनवरी की परेड देखने का मौका मिला। उन्होंने उस पल को याद कर साझा किया जब प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ में कहा था-‘उमाशंकर पाण्डेय ने भू-जल संरक्षण की दिशा में एक नया प्रयोग करके देश में पुरखों के जल जोड़ने के बेजोड़ तरीके से परंपरागत सामुदायिक जल क्रांति को जन्म दिया है, जिसे देश में खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़ के नाम से जाना जाता है।’ उमाशंकर कहते हैं कि जखनी में बगैर किसी एनजीओ और बगैर किसी सरकारी अनुदान के सिर्फ समुदायिक आधार पर लगभग तीन दशक के सतत प्रयास से ‘खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़’ का प्रयोग सफल रहा। वह कहते हैं कि प्रधानमंत्री के प्रोत्साहन के बाद इस प्रयोग को केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय, नीति आयोग और उत्तर प्रदेश सरकार ने परखा। संभवतः इसी वजह से बुंदेलखंड में जन्मे इस व्यक्ति (उमाशंकर पाण्डेय) को 70 वर्ष में पहली बार सेवा के क्षेत्र की पद्म अलंकरण सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उमाशंकर पाण्डेय ने बताया कि जल शक्ति मंत्रालय ने उनके इस मॉडल को पूरे देश में लागू किया है। उन्हें जलयोद्धा सम्मान से 2020 में सम्मानित किया। इससे पहले 1999 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल डॉ. सूरजभान ने उन्हें इसके लिए पुरस्कार प्रदान किया। बांदा प्रशासन ने ‘खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़’ विधि को 470 ग्राम पंचायतों में लागू किया। इस विधि को उत्तर प्रदेश सरकार के कृषि उत्पादन आयुक्त ने पूरे प्रदेश की 58, 000 ग्राम पंचायतों के लिए उपयुक्त माना है। वह कहते हैं कि प्रधानमंत्री ने तो देशभर के प्रधानों को पत्र लिखकर मेड़बंदी सहित परंपरागत तरीके से वर्षा की बूंदों को रोकेने का आह्वान कर चुके हैं। पानी की बूंद-बूंद बचाने के लिए लंबी पदयात्रा करने को अपने जीवन का हिस्सा बना चुके उमाशंकर कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आधुनिक भारत के सच्चे भगीरथ हैं। वह जब भी मिलते हैं, पीठ थपथपाते हैं। नदियों के पुनरुद्धार और पानी बचाने के तौर-तरीकों पर चर्चा करते हैं।
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