जयपुर । राजस्थान में भाजपा बीते दो लोकसभा चुनाव से सभी 25 सीटें जीतती आ रही है। ऐसे में दिग्गज नेताओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती पिछली बार के प्रदर्शन को फिर से दोहराने की है। वहीं, कांग्रेस पार्टी दो बार से सभी सीटों पर हार के क्रम को तोड़ने को लेकर रणनीति बनाने में जुटी है। इस बार भाजपा को कुछ सीटों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में मुख्यमंत्री भजनलाल, प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी सहित अन्य नेता उन चुनौतियों से निपटने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं।
दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस ने पिछले दो लोकसभा चुनावों की हार से सबक लेते हुए ज्यादातर सीटों पर नए चेहरों को मौका दिया है। चुनावी रणनीति पर भी विशेष फोकस किया जा रहा है। यहां तक की चुनाव घोषणा पत्र को भी जयपुर से लॉन्च किया जा रहा है। ऐसे में बड़े नेताओं को एड़ी से चोटी का जोर लगाना पड़ेगा। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा पहली बार विधायक का चुनाव लड़े और मुख्यमंत्री बनाए गए हैं। संगठन का और चुनाव करवाने का उन्हें लम्बा अनुभव है। इस बार संगठन के साथ-साथ सरकार में रहकर चुनावी मैनेजमेंट का जिम्मा सबसे ज्यादा इन्हीं पर है। पार्टी के लिए प्रदेश में सबसे बड़ा चेहरा मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का ही है।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तीन बार सीएम रहे, अभी विधायक हैं। इस नाते प्रदेश की जिम्मेदारी है, लेकिन गृह जिले जोधपुर में पार्टी प्रत्याशी को जिताने को लेकर प्रतिष्ठा दांव पर है। पांच साल गहलोत और भाजपा उम्मीदवार गजेन्द्र सिंह राजनीतिक बयानों में एक दूसरे के निशाने पर रहे। अब गहलोत को उम्मीदवार को जिताने के लिए जुटना होगा। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी चित्तौड़गढ़ से सांसद हैं। इस बार फिर से चुनाव लड़ रहे हैं। एक साल पहले प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। इन्हीं के नेतृत्व में पार्टी ने विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की और अब लोकसभा चुनाव में भी यही प्रदेश अध्यक्ष हैं। जोशी के सामने दोहरी चुनौती हैं। इन्हें खुद भी चुनाव लड़ना है. और अन्य प्रत्याशियों का चुनावी प्रबंधन भी देखना है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा पूर्व मंत्री के साथ ही कांग्रेस पार्टी के अभी प्रदेश अध्यक्ष है। मुख्य रूप से उम्मीदवारों को जिताने को लेकर डोटासरा की साख दांव पर लगी है। लेकिन शेखावाटी की सीटों को पार्टी की झोली में डालने को लेकर उन्हें पूरी ताकत लगानी होगी। सीकर और चूरू लोकसभा क्षेत्र में डोटासरा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।
केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत वर्तमान में जोधपुर से सांसद हैं दो बार चुनाव जीत चुके हैं। तीसरी बार पार्टी ने फिर से विश्वास जताया है। प्रदेश में पानी के अन्तरराज्यीय मुद्दों को लेकर खासे चर्चित रहे प्रदेश में भाजपा सरकार बनते ही पानी के दो बड़े मुद्दों को सुलझाने की कोशिश की। खुद की सीट निकालने के अलावा आसपास की सीटों को भी जिताने की जिम्मेदारी है। पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट उप मुख्यमंत्री रहने के साथ ही पार्टी के लंबे समय तक प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं। उन पर भी पार्टी उम्मीदवारों को जिताने की जिम्मेदारी है। लेकिन उनके गृह जिले टोंक-सवाईमाधोपुर लोकसभा सीट और दौसा में पार्टी के उम्मीदवारों को जिताने को लेकर ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी है। यहां जीत के लिए पायलट की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।
केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल बीकानेर से लगातार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। वे भाजपा का प्रदेश का बड़ा एससी चेहरा हैं। केन्द्र ने कुछ समय पहले ही इन्हें विधि मंत्रालय देकर बड़ी जिम्मेदारी दी थी। खुद की सीट जीतने के अलावा पश्चिमी राजस्थान के एससी मतदाताओं को साधने की बड़ी चुनौती है। इनके पास विधानसभा चुनाव में भी घोषणा पत्र बनाने की बड़ी जिम्मेदारी थी। टीकाराम जूली पूर्व मंत्री के साथ नेता प्रतिपक्ष हैं। इस नाते पूरे प्रदेश के लिए जिम्मेदार है। लेकिन, सबसे पहली जिम्मेदारी गृह जिले अलवर के प्रत्याशी को जिताने की है। इस लोकसभा में आने वाली सभी विधानसभाओं में कांग्रेस को भाजपा से ज्यादा वोट मिले थे, लेकिन लोकसभा में दो बार से शिकस्त मिल रही है। यहां की जीत ही उनके कद को पार्टी में बढ़ाएगी।
केन्द्रीय मंत्री कैलाश चौधरी बाड़मेर-जैसलमेर से सांसद हैं। विधानसभा चुनावों में बाड़मेर जिले में दो सीटों पर निर्दलीय जीते हैं। एक विधायक को तो पार्टी ने साध लिया है, लेकिन एक अन्य निर्दलीय विधायक रविन्द्र सिंह भाटी ने लोकसभा चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है। इससे कैलाश चौधरी की मुश्किलें थोड़ी बढ़ती नजर आ रही हैं। चौधरी के लिए खुद की सीट निकालना ही चुनौती बन गई हैं। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व भीलवाड़ा लोकसभा सीट से उम्मीदवार सीपी जोशी कांग्रेस के मेवाड़ के बड़े नेता हैं। लेकिन अब उनके कंधों पर स्वयं की जीत के साथ ही मेवाड़ की राजसमंद, चित्तौड़गढ़ और उदयपुर की सीट भी पार्टी की झोली में डालने को लेकर बड़ी चुनौती है। ये हाल ही विधानसभा चुनाव में नाथद्वारा सीट से मैदान में उतरे थे लेकिन हार मिली।