सामाजिक समरसता का अभियान सुदर्शन जी का जीवन मंत्र था : मुख्यमंत्री साय

रायपुर । मुख्यमंत्री विष्णु देव साय रविवार की देर शाम को रायपुर के दीनदयाल उपाध्याय आडिटोरियम में आरएसएस के पंचम सरसंघचालक स्वर्गीय सुदर्शन जी की स्मृति में आयोजित राष्ट्रीय व्याख्यान में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। ‘‘भारतीय परिवार व्यवस्था की शक्ति’’ विषय पर आयोजित व्याख्यान में मुख्य वक्ता आरएसएस के सह सरकार्यवाह रामदत्त चक्रधर थे। उन्होंने व्याख्यान में कहा कि मूल्य आधारित परिवार व्यवस्था भारत की शक्ति है, परिवार भारत देश की धुरी है। परिवार एक होगा, तो देश एक होगा। दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में श्री सुदर्शन प्रेरणा मंच द्वारा आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता मध्यक्षेत्र के संघचालक डॉ. पूर्णेंदु सक्सेना ने की। इस अवसर पर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह और श्री सुदर्शन प्रेरणा मंच के मार्गदर्शक डॉ. राजेंद्र दुबे मंच पर उपस्थित थे।

सामाजिक समरसता का अभियान सुदर्शन जी का जीवन मंत्र था : मुख्यमंत्री साय

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने मुख्य अतिथि की आसंदी से कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए पूर्व सरसंघचालक सुदर्शन के जीवन पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सामाजिक समरसता का अभियान सुदर्शन जी का जीवन मंत्र था। वे समरसतापूर्ण समाज के स्वप्न दृष्टा थे। मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा सुदर्शन जी के अनेक संस्मरण मुझे आज याद आ रहे हैं। उनसे मिलने से सदैव कुछ नया करने की प्रेरणा मिलती थी। किसी जनप्रतिनिधि से मिलते थे तो शासन द्वारा जनता के हित काम करने की सलाह देते। वे बड़े सहज और सरल व्यक्ति थे, उनसे मिलने में किसी को हिचक नहीं होती थी। एक बार कोई उनसे मिल ले तो उनसे बड़ा प्रभावित हो जाता था। उन्होंने इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण की थी इसलिए नई तकनीक, विज्ञान के विषयों पर भी उनका अध्ययन था। कोई ऐसा विषय नहीं था जिस पर उनका गहरा अध्ययन नहीं था। आज दुनिया जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण को लेकर चिंतित हुई है, 30 साल पहले सुदर्शन जी पानी बचाने, पेड़ लगाने, पर्यावरण बचाने, जैविक खेती की बातें कहते थे। उनका छत्तीसगढ़ की मयारू भूमि से निकट का संबंध रहा है।

व्याख्यान के मुख्यवक्ता श्री रामदत्त ने ‘‘भारतीय परिवार व्यवस्था की शक्ति’’ विषय पर विचार प्रकट करते हुए कहा कि भारत में उत्कृष्ट जीवन मूल्य विकसित हुए, जो परिवार में देखने को मिलता है। पश्चिमी देशों में हथियार लेकर बच्चे स्कूल जाते हैं, गोलीबारी में प्रतिवर्ष 40 हजार बच्चे मारे जाते हैं। अमेरिका में पिताहीन बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जबकि भारत में परिवारों में बच्चों को चरित्रवान बनाया जाता है। ग्रीक के यात्री मेगास्थानिज ने लिखा था कि भारत के लोग चरित्रवान हैं, अंग्रेज अधिकारी मैकाले भी यही कहता था। अंग्रेज इसी शक्ति को तोड़कर यहां अपना शासन स्थापित करना चाहते थे।

उन्होंने कहा कि भारत देश में स्त्री को माता मानते हैं। रामायण में लक्ष्मण जी का प्रसंग आता है जिसमें वे अपनी भाभी का सिर्फ पैर देखने की बात कहते हैं। स्वामी विवेकानंद, छत्रपति शिवाजी के जीवन में भी इसी भाव के अनेक उदाहरण मिलते हैं। केवल पौराणिक या ऐतिहासिक नहीं आज के सामान्य लोगों के जीवन में उच्च जीवनमूल्य के दर्शन होते हैं। बच्चों को संस्कार परिवार में माता सिखाती है। भारतीय दर्शन में सभी की चिंता है, पशु-पक्षी, वनस्पति, माता पिता की सेवा, सम्मान का भाव, गुरु के प्रति सम्मान का भाव, अतिथियों का सम्मान, अतिथि देवो भव, सबको साथ लेकर चलना, इस प्रकार की सीख प्रत्येक परिवार अपने बच्चों को देता है। यही संस्कार है। वर्तमान समय में हम देख रहे हैं कि परिवार, समाज में इन मूल्यों का क्षरण हो रहा है।

श्री रामदत्त ने कहा कि बच्चों में राष्ट्र प्रथम का भाव भी परिवार में विकसित होता है। इस भाव को जगाने की आवश्यकता है, इसमें माता की भूमिका महत्वपूर्ण है। भारत में माता का परिचय बच्चों से होता है, वे ही बच्चों को संस्कार देती हैं। माता बच्चों के विचारों को दिशा देती है। जैसे स्वामी विवेकानन्द ने अपने बचपन में कहा कि वह तांगा चलाने वाला बनना चाहते हैं, तब उनकी माता ने उनको उलाहना देने के बजाय कुरूक्षेत्र की फोटो दिखाकर कहा अगर तांगा चलाने वाला बनना है तो अर्जुन का रथ चलाने वाले कृष्ण की तरह तांगा चलाने वाला बनना होगा। उन्होंने स्वामी विवेकानंद के विचारों को दिशा दी।

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