हर प्रेग्नेंसी के बाद 2 से 3 महीने की बायोलॉजिकल एजिंग बढ़ती है। ऐसे में यदि कोई महिला बार-बार प्रेग्नेंट होती है, तो वह दूसरी महिला की तुलना में जल्द बूढ़ी दिख सकती है। एक रिपोर्ट के अनुसार, कम उम्र में प्रेग्नेंट होने वाली महिलाओं में एजिंग की समस्या जल्द होती है।
इन महिलाओं में झुर्रियां और झाई, आंखों के नीचे काले घेरे, स्किन की चमक कम होना, चेहरे पर रेड बंप निकलना, स्किन ढीली पड़ना और काले धब्बे पड़ना जैसे लक्षण नजर आने लगते हैं। इसके अलावा फंगल इन्फेक्शन, जोड़ों में दर्द, नाखून में दरारें पड़ना, बार-बार सर्दी-खांसी होना, पीरियड्स अनियमित होना, वजन बढ़ना, जीभ पर सफेद परत जमना, क्रैंप, नींद नहीं आना और बाल झड़ना जैसे लक्षण भी हो सकते हैं।
प्रेग्नेंसी का पूरे शरीर पर पड़ता है असर
प्रेग्नेंसी के 9 महीनों में हर महिला का शरीर हर तरह के प्रेशर को झेलता है। इस दौरान महिलाओं में सिर्फ फिजिकल चेंजेज नहीं होता है, बल्कि अंदरूनी अंग भी अपनी सीमा से बाहर जाकर काम करते हैं।
बच्चे के जन्म से पहले महिलाओं के साथ प्रेग्नेंसी के कॉम्प्लिकेशंस शुरू हो जाते हैं। उनका ब्लड वॉल्यूम बढ़ता है और हार्ट को बढ़े हुए एक्स्ट्रा ब्लड को पंप करने के लिए अधिक मशक्कत करनी पड़ती है।
प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं के शरीर का इम्यून सिस्टम बदल जाता है। वहीं इस दौरान ब्लड वॉल्यूम, मेटाबॉलिज्म, ब्लड प्रेशर और यहां तक कि हडि्डयों में भी बदलाव आता है।
भ्रूण को मिलता है कैल्शियम
बता दें कि प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भ में पलने वाले बच्चे को मां से बड़ी मात्रा में कैल्शियम मिलता है। इस कारण इंटेस्टिनल कैल्शियम एब्जॉर्शन बढ़ जाता है। वहीं प्रेग्नेंसी के आखिरी महीने में मां की हड्डियां कमजोर होने लगती हैं।
वहीं डिलीवरी के बाद बच्चे को मां ब्रेस्ट फीडिंग करवाती है। इससे भी बच्चे को बड़ी मात्रा में कैल्शियम मिलता है। दरअसल, ब्रेस्ट फीडिंग की वजह से महिलाओं में बोन डेंसिटी करीब 7 फीसदी तक घटती है। वहीं अगर महिला अलग से भी कैल्शियम का सेवन करती हैं, फिर भी बोन लॉस नहीं रुक पाता है।
इसके साथ ही तनाव बढ़ने से भी महिलाएं अपनी उम्र से 8-10 साल बड़ी लगने लगती हैं। कई महिलाएं कम उम्र की होने के बाद भी उम्र में काफी बड़ी दिखती हैं। जिसकी सबसे बड़ी वजह प्रेग्नेंसी है। बता दें कि हेल्थ एक्सपर्ट के मुताबिक प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को एंग्जाइटी की समस्या भी होती है।
कई महिलाएं डिलीवरी के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन से गुजरती हैं। गर्भावस्था के दौरान एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन हॉर्मोन्स की मात्रा अधिक होती है। लेकिन बच्चे के जन्म के बाद अचानक से हार्मोन की मात्रा कम हो जाती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 22 फीसदी से अधिक महिलाएं डिलीवरी के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन का शिकार होती हैं।
डिलीवरी के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन कई महीनों तक चलता है। वहीं सही समय पर सही इलाज न मिल पाने पर महिलाएं साइकोटिक डिप्रेशन में भी जा सकती हैं। यह एक खतरनाक स्टेज मानी जाती है, जिसमें महिला खुद को या फिर अपने बच्चे को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं।
हेल्थ एक्सपर्ट की मानें तो कई महिलाएं अपनी उम्र से 4-5 साल तो कुछ 10 साल तक बड़ी दिखती हैं, जिसका मुख्य कारण अधिक तनाव लेना है। जो महिलाएं एंग्जाइटी और डिप्रेशन की समस्या से गुजरती हैं, उनको पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
एजिंग की समस्या
बता दें कि आंतों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया को गट बैक्टीरिया कहते हैं। जोकि एक वयस्क की आंतों में 100 ट्रिलियन पाए जाते हैं। जिसको माइक्रोबायोम या माइक्रोबायोटा भी कहा जाता है। इनमें से 400 से अधिक प्रकार के हेल्दी बैक्टीरिया होते हैं।
जब हम खाना खाते हैं, तो आंतों में पाए जाने वाले ये बैक्टीरिया उस खाने को तोड़ने का काम करते हैं, जिससे खाना आसानी से पचता है और हमारे शरीर को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं। वहीं गट बैक्टीरिया हानिकारक बैक्टीरिया को बढ़ने से रोकते हैं। लेकिन जब गट बैक्टीरिया घटते हैं, तो व्यक्ति को पाचन संबंधी समस्या होने लगती है।