हल्द्वानी: बेशक देवभूमि उत्तराखंड की पांच संसदीय सीटों पर सिर्फ एक महिला प्रत्याशी ही मैदान में है लेकिन इस आम चुनाव में सभी राजनैतिक सूरमाओं की दिल्ली की राह आधी आबादी ही तय करेगी।
उत्तराखंड की पांच संसदीय सीटों पर 55 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं। इनमें टिहरी सीट पर 11 प्रत्याशी आमने सामने हैं। इसी सीट से ही भाजपा की उम्मीदवार एवं एकमात्र महिला प्रत्याशी माला राज्यलक्ष्मी शाह चुनाव लड़ रही हैं। वहीं पौड़ी गढ़वाल में 13, अल्मोड़ा में 7, नैनीताल में 10 और हरिद्वार में 14 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं।
सत्ता के इस सर्वोच्च संग्राम में आधी आबादी के पास किसी भी दिग्गज की हार को जीत और जीत को हार में बदलने की पूरी ताकत है। राज्य निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में 83,37, 914 मतदाता हैं। इनमें 43,17,579 पुरुष और 40,20,038 महिला मतदाता शामिल हैं जबकि थर्ड जेंडर के मतदाताओं की 297 हैं। जो कि कुल मतदाता का 48.21 प्रतिशत होता है। एक ऐसा राज्य जहां औसतन 60-70 प्रतिशत मतदान होता है, वहां 48.21 प्रतिशत मतदाता किसी भी बड़ी उलट फेर का माद्दा रहता है।
अगर राजनैतक विश्लेषकों की मानें तो उत्तराखंड की सभी संसदीय सीटों पर शहरी क्षेत्रों को छोड़ दें तो गांवों के बूथों पर महिला मतदाता ही निर्णायक होती हैं। दरअसल, पहाड़ में पलायन एक ज्वलंत समस्या है, हर चुनाव में यह राजनैतिक दलों का मुद्दा भी बनता है। होता यह है कि रोजगार की आस में पुरुष तो रोजगार की तलाश में शहरों का रुख करते हैं जबकि महिलाएं ही गांवों में रहती हैं।
गांवों को बसाने और बचाए रखने में आधी आबादी का बड़ा योगदान होता है। इस वजह से त्रिस्तरीय, विधानसभा से लोकसभा चुनाव चुनाव में महिलाओं का मतदान प्रतिशत ज्यादा रहता है। इस वजह से महिलाएं किसी भी राजनैतिक दल और माननीय की गणित बना और बिगाड़ सकती हैं। यही वजह है कि इस बार भाजपा, कांग्रेस समेत सभी राजनैतिक दल महिलाओं को रिझाने में जुटे हुए हैं।