देहरादून। उत्तराखंड कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने अल्मोड़ा के बिनसर अभयारण्य इलाके में चार वन कर्मचारियों के जिंदा जलने पर दुःख व्यक्त करते हुए मृत आत्माओं की शान्ति एवं उनके परिजनों के प्रति गहरी संवेदना प्रकट की है। साथ ही झुलसे वनकर्मियों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना के साथ उत्तराखंड सरकार से उनके फ्री उपचार की मांग की।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार जिंदा जले कर्मचारियों को 10 लाख नहीं बल्कि 25-25 लाख का मुआवजा देने के साथ उनके परिवार से एक व्यक्ति को विभाग में नियुक्त करे, ताकि वह अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार में अल्मोड़ा में मेडिकल कॉलेज की स्थापना की गई थी परन्तु मेडिकल कॉलेज में बर्न वार्ड है ही नहीं तो आग से झुलसने वाले कर्मियों का उपचार कैसे होगा? यही हाल सभी मेडिकल कॉलेजों एवं अन्य अस्पतालों का है। कहीं डाक्टर तो कहीं कर्मचारियों की कमी है और कहीं वार्ड नहीं है तो कहीं टेक्नीशियन नहीं हैं। आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाओं का भी बुरा हाल है।
करन माहरा ने कहा कि उत्तराखंड का कुल वन क्षेत्र लगभग 72 प्रतिशत है। कांग्रेस पार्टी लगातार केंद्र सरकार से उत्तराखंड को ग्रीन बोनस देने की मांग करती आ रही है, ताकि राज्य में बंजर भूमि पर पौधरोपण किया जा सके परंतु आज तक भाजपा सरकार ने उत्तराखंड को ग्रीन बोनस नहीं दिया। उन्होंने कहा कि अब तक राज्य में वनों में लगी आग से लगभग 17 वनकर्मी की मृत्यु हो चुकी है। उन्होंने राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि राज्य के जंगलों में काफी समय से आग लग रही है, पर वन विभाग आग बुझाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा पाया है, जो काफी दुःखद है। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि आग से वनों को कैसा बचाया जा सकता है, इसके लिए सरकार ने अभी तक कोई ठोस नीति नहीं बनाई है। इसका खामयाजा वनकर्मियों को भुगतना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि वनोें में आग लगने से पेड़, पौधे जल रहे हैं जिससे पीने के पानी के स्त्रोत लगातार सूख रहे हैं और जंगली जानवरों को भी हानि पहुंच रही है।
करन माहरा ने कहा कि वनाग्नि पर काबू पाने के लिए सरकार के पास कोई भी ठोस कार्ययोजना नहीं है और ना ही अस्थाई कर्मचारियों के लिए कोई फायर सूट ही है, ना कोई बीमा योजना है। इससे राज्य सरकार को सेना की मदद लेनी पड़ रही है। इससे साफ है कि सरकार पूरी तरह फेल हो चुकी है। उन्होंने जनता से अपील करते हुए कहा कि हमारा भी कर्तव्य बनता है कि हम स्वयं भी आग बुझाने में वनकर्मियों की मदद करें और उन लोगों को भी चिन्हित करें जो वनों को आग के हवाले कर रहे हैं। यदि वन ही नहीं होंगे तो हमारा जीवन कैसे सुरक्षित रहेगा।