वाराणसी। आषाढ़ अमावस्या पर शुक्रवार को श्रद्धालुओं ने पवित्र गंगा में स्नान के बाद अपने पितरों का तर्पण किया। तर्पण के बाद दान पुण्य कर श्रद्धालुओं ने श्री काशी विश्वनाथ दरबार में भी हाजिरी लगाई।
अमावस्या पर पितरों के तर्पण के लिए राजेन्द्र प्रसाद घाट, मानसरोवर, अहिल्याबाई, दशाश्वमेध, मणिकर्णिका घाट पर दक्षिण भारत के श्रद्धालुओं की भीड़ दिखी।
शिव आराधना समिति के डॉ. मृदुल मिश्र ने बताया कि आषाढ़ अमावस्या तिथि पर पितरों का तर्पण और पिंडदान करने का विधान है। इससे पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। आषाढ़ महीने की अमावस्या को अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि मांगलिक कार्यों को करने से शुभ फल की प्राप्ति नहीं होती है।
आषाढ़ अमावस्या के दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। सनातन धर्म में अमावस्या के दिन कुछ कार्यों को करना वर्जित बताया गया है। मान्यता है कि इन कार्यों को करने से जातक को जीवन में कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है और पितृ नाराज हो सकते हैं। जिससे पितृ दोष लगता है।
अमावस्या को झाड़ू नहीं खरीदनी चाहिए। ऐसा करने से मां लक्ष्मी नाराज हो सकती हैं। पशु-पक्षी को परेशान न करें। घर में लड़ाई झगड़ा न करें। बाल और नाखून काटने से बचना चाहिए। अमावस्या के दिन दिन शुभ कार्य जैसे- शादी, गृह प्रवेश और मुंडन आदि कार्य नहीं करने चाहिए। किसी को गलत शब्द न बोले और क्रोध करने से बचें। ऐसा करने से पितृ दोष लग सकता है। इस दिन कौवे, चींटियों, कुत्तों और गाय को भोजन खिलाना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है।