अहमदाबाद । गुजरात हाई कोर्ट ने शुक्रवार को कर्मचारियों के हित में एक महत्पूर्ण फैसला दिया है। गुजरात हाई कोर्ट के जज हेमंत प्रच्छक ने फैसला दिया है कि किसी प्रकार की अग्रिम जानकारी किए बगैर कर्मचारी को नौकरी से अलग करना, प्रकृति के न्याय सिद्धांत का उल्लंघन है।
गुजरात हाई कोर्ट ने वन विभाग के कर्मचारी को नौकरी से हटाने के केस में यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। पीडब्ल्यूडी और फॉरेस्ट एम्प्लाइ यूनियन और अन्य की ओर से दायर याचिका के केस में जज हेमंत प्रच्छक ने फैसला सुनाया। हाई कोर्ट ने याचिका दायर करने वालों में से कई को नौकरी में संबंधित लाभ और सेवा का सम्मान पुन:देने का आदेश दिया। साथ ही अन्य कर्मचारियों के केस में हाई कोर्ट ने उन्हें प्रबंधन के समक्ष अपनी मांग रखने की मंजूरी दी। साथ ही कर्मचारियों की मांग को लेकर उन्हें पूरा अवसर प्रदान कर 6 सप्ताह के अंदर प्रबंधन को निर्णय लेने का आदेश भी सुनाया। हाई कोर्ट के अनुसार प्रबंधन को यह भी कहा गया कि वे किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले सुप्रीम कोर्ट के संबंधित फैसले और सरकार के वर्ष 1988 के प्रस्ताव समेत प्रावधानों को ध्यान में लें।
जानकारी के अनुसार वन एवं पर्यावरण विभाग की ओर से सरकार के 1988 के प्रस्ताव के लाभों से वंचित रखते हुए कई कर्मचारियों की नौकरी की सेवा को अवैध रूप से समाप्त कर दिया गया था। प्रबंधन के इस निर्णय से नाराज कर्मचारियों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। याचिकाकर्ताओं ने वन एवं पर्यावरण विभाग की ओर से नियुक्त किया गया था। साथ ही नौकरी में डेली वेजेज कर्मचारी के रूप में उनका कार्यकाल 7 वर्ष से अधिक होने के बावजूद उन्हें न्यूनतम वेतन से भी कम राशि दी जाती थी। सेवा निवृत्त के उम्र पर पहुंचने के बाद भी उन्हें निवृत्त का लाभ नहीं दिया गया था। गुजरात सरकार ने स्वयं प्रस्ताव पारित कर इन कर्मचारियों को सभी लाभ देने का प्रस्ताव पारित किया था, लेकिन सक्षम अधिकारियों ने सरकार के इस प्रस्ताव को भी नरजअंदाज कर दिया। अब हाई कोर्ट के निर्णय के बाद कर्मचारियों को न्याय मिला है।