सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के उपाध्यक्ष सुभाशीष पांडा के हलफनामे पर तीखी नाराजगी जताई। कोर्ट में दाखिल हलफनामे में दावा किया गया था कि उनकी जानकारी के बिना दिल्ली रिज में 642 पेड़ काटे गए थे। शीर्ष अदालत ने कहा कि शीर्ष अदालत अब डीडीए पर भरोसा नहीं कर सकती। पांडा के हलफनामे ने पुष्टि की कि सड़क को चौड़ा करने के लिए 642 पेड़ 468 वन भूमि पर और 175 डीडीए या गैर-वन भूमि पर 16 फरवरी से शुरू होकर 10 दिनों में सतबरी में काट दिए गए, इससे काफी पहले 4 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने पेड़ों को काटने के लिए डीडीए के आवेदन को खारिज कर दिया था।
न्यायमूर्ति एएस ओका और उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने हलफनामे पर गौर करने के बाद कहा कि जहां भी पेड़ काटे गए हैं, वहां जमीन बहाल करनी होगी। इसे समयबद्ध तरीके से किया जाना चाहिए। हम अब डीडीए पर भरोसा नहीं कर सकते। पांडा ने 9 मई को एक याचिका के बाद अदालत द्वारा अवमानना नोटिस पर हलफनामा दायर किया कि डीडीए ने शीर्ष अदालत की मंजूरी के बिना दिल्ली रिज में पेड़ काटे।
अपने हलफनामे में पांडा ने कहा कि डीडीए फिर से पेड़ लगाकर, पूरे हिस्से में बाड़ लगाकर और आगे कोई सड़क चौड़ीकरण कार्य नहीं करके भूमि को उसकी मूल स्थिति में बहाल करेगा। अदालत दिन में हलफनामे पर विचार करने के लिए सहमत हो गई और पांडा की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से निर्देश लेने को कहा कि क्या वृक्षारोपण और रखरखाव का काम राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान जैसी किसी स्वतंत्र एजेंसी को सौंपा जा सकता है।