औरैया । इटावा लोकसभा क्षेत्र में महिलायों को रिझाने और चुनाबी एजेंडे में नारी सशक्तिकरण को भुनाने के लिए बीजेपी इस बार किसी महिला को अपना उम्मीदवार बनाने की अटकलें तेज होने लगी हैं। सूत्रों की माने तो संभवित उम्मीदवारों में कमलेश कठेरिया को सबसे प्रबल दावेदार के रूप में नाम उभर कर आ रहा है।चुनावी चौसर में अपने दांव पेंचों से विरोधियों को आश्चर्य में डालने बाली बीजेपी इटावा संसदीय क्षेत्र में नए प्रयोग के रूप में नारी सशक्तिकरण को भुनाने की कोशिशें तेज होने से दावेदारों में खलबली मची हुई है। तो वहीं दूसरे दलों के लोग भी सकते में हैं। लगातार दो चुनावो में जहां पार्टी ने परम्परागत रूप से महिलाओं की अनदेखी कर एक बार अशोक दोहरे और दूसरी बार रामशंकर कठेरिया पर अपना भरोसा जताया और सफल भी रहा। मगर इस बार सियासी गलियारों से आ रही खबरों की बात करें तो टिकट की बाजी महिला उम्मीदवार के हाथों में जाती दिख दे रही है। विश्वस्त सूत्रों की माने तो इसके पीछे तर्क दिया जा रहा कि सपा के गढ़ में चुनावी एजेंडे में शामिल नारी सशक्तिकरण की धार इटावा की सरजमी से पूरे देश में देने की तैयारी की जा रही है। आधी आबादी को रिझाने को लिए मजबूत उम्मीदवार की खोज अंदरखाने तेजी से शुरु हो चुकी है। शीर्ष नेतृत्व अभी भले ही अपने पत्ते नहीं खोल रहा हो लेकिन तैयारियां इसको लेकर अपने चरम पर हैं।उल्लेखनीय है कि पूर्व परिसीमन में 1998 आम चुनाव में सिर्फ एक बार महिला उम्मीदवार के रूप में सुखदा मिश्रा पर दांव आजमाया गया था। तब उन्होंने अपने निकटतम उम्मीदवार को कड़ी टक्कर देते हुए पहली बार संसद में इटावा की नुमाइंदगी महिला सांसद के रूप में की थी। लोग बताते हैं कि उस समय समाजवादी गढ़ यह लोगों को हैरान कर देने वाला परिणाम सिर्फ और सिर्फ महिलाओं की सहानुभूति के रूप में मिली थी और जबरदस्त मतदान का नतीजा रहा था। इसके बाद बीजेपी ने यहां किसी भी महिला पर भरोसा न जताते हुए कई चुनावों शिकस्त का सामना किया। 2009 के चुनाव में विषम परिस्थितियों में जब पार्टी की हालत बेहद खराब थी। तब कहीं जाकर पार्टी नेतृत्व ने यहां से साफ सुथरी छवि और महिला चेहरे के रूप में कमलेश कठेरिया को उम्मदीवार बनाया, जिनके संघर्ष और मेहनत ने पार्टी के पुराने प्रदर्शन से बेहतर परफॉर्मेंस के रूप नतीजा सामने आया। यह चुनाव भले ही कमलेश कठेरिया हार गई हों मगर विरोधियों को कड़ा मुकाबला का सामना करना पड़ गया था। इसके बाद 2014 के चुनाव और 2019 के चुनाव में मोदी लहर ने आसान हो चुके चुनावों को जीता। इस बार भी पार्टी यहां चुनाव की जीत को लेकर आश्वस्त है लेकिन नए प्रयोग के रूप में एक बार फिर महिला उम्मीदवार के रूप में अपना दांव चल सकती है। सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि अब सीट के आरक्षित हो जाने और नए परसीमन में जातीय गणना को मद्देनजर रखा जाए तो टिकट की बाजी एक बार फिर अनुभवी चेहरे के तौर पर कमलेश कठेरिया के हाथों में जाती दिख रही है। उनके द्वारा भी बीते कुछ समय से लोकसभा क्षेत्र में आम जनता से जनसंपर्क करते हुए भी लोग में यह चर्चा होते देखी जा रही है।
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