रायबरेली । इमोशनल बातें और पारिवारिक कनेक्शन। सौ सालों की दुहाई और विरासत के लिये संकल्प। रायबरेली में इस समय कांग्रेस हर वह तीर छोड़ रही है, जिससे चुनाव में फ़ायदा मिल सके।लेकिन इन सब के बीच एक चर्चा और चल रही है कि अपने ही संसदीय क्षेत्र के लोगों की अनदेखी। लगातार 25 सालों से सांसद रहीं सोनिया गांधी की बात करें तो क्षेत्र में कम ही आईं हैं। 2019 कि बाद से तो उनकी उपस्थिति नगण्य रही है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गांधी परिवार की इस कमजोरी को भांप लिया और एक जनसभा में सवाल किया कि आपके दुख में परिवार कब कब शामिल रहा। गृह मंत्री ने कई घटनाओं को जिक्र भी किया। क्षेत्र में अनुपस्थित भी धीरे-धीरे एक मुद्दा बन रहा है। हालांकि आरोप-प्रत्यारोप के बीच जनता में यह सवाल गूंज रहा है कि आख़िर उनके हाल-चाल लेने के लिए जनप्रतिनिधि ही उपलब्ध नहीं हो तो कैसे काम चलेगा।
चुनावी चर्चाओं का बीच ऊंचाहार के अतुल त्रिपाठी कहते हैं कि विधायक और सांसद से लोगों की अपेक्षा होती है कि छोटे-छोटे काम के लिए वह उपलब्ध रहेगा या बिना किसी माध्यम के उनसे सीधे मुख़ातिब होगा।गांधी परिवार की व्यवस्था इसके उलट है। उन्होंने कहा कि रायबरेली में स्थानीयता एक बड़ा मुद्दा है जो कि अंडर करंट बन रहा है।
सुधीर यादव और राजेश मिश्रा का कमोबेश यही सोचना है कि उनका प्रतिनिधि ऐसा हो जिससे वह जरूरत पड़ने पर मिल सकें और अपनी बात कह सकें। क्योंकि जब मुलाकात ही नहीं होगी तो काम कैसे होगा।इसलिए इस चुनाव में ऐसा प्रतिनिधि बने जो उनके सुख-दुःख में हमेशा उपलब्ध रहे।