चुनावी समर में पहली बार, “आधी आबादी” भी दावेदार

धौलपुर । कहते हैं कि महिला और पुरुष एक गाड़ी की दो पहिए हैं तथा देश और समाज के समग्र विकास में महिला और पुरुष की सक्रिय एवं समान भागीदारी जरूरी है। लेकिन संसदीय चुनाव की राजनीति में यह सोचनीय विषय है कि पूर्वी राजस्थान के सिंह द्वार कहे जाने वाले करौली-धौलपुर संसदीय सीट पर भागीदारी तो दूर, आज तक भाजपा और कांग्रेस में किसी ने भी महिला को अपना प्रत्याशी तक नहीं बनाया। लेकिन बदलते वक्त के साथ आए बदलाव के चलते देश की 18 वीं लोकसभा के गठन के लिए हो रहे संसदीय चुनाव में देर से ही सही, लेकिन भाजपा ने इस मिथक को तोड़ा है और करौली-धौलपुर सीट से इंदू देवी जाटव को अपना प्रत्याशी बनाया है।

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान के करौली जिले की कुल जनसंख्या 1,458, 248है । जिसमें से 7,83,639 पुरुष हैं, जबकि 6,74,609 महिलाएं हैं। करौली जिले का औसत लिंगानुपात 861 है । जनगणना 2011 के अनुसार कुल जनसंख्या में से 15 प्रतिशत लोग शहरी क्षेत्रों में जबकि 85 प्रतिशत लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। शहरी क्षेत्रों में औसत साक्षरता दर 72.8 प्रतिशत है,जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 65 प्रतिशत है। इसके अलावा करौली जिले में शहरी क्षेत्रों का लिंगानुपात 889 है जबकि, ग्रामीण क्षेत्रों का लिंगानुपात 856 है। करौली जिले की कुल साक्षरता दर 66.22 प्रतिशत है। करौली जिले में पुरुष साक्षरता दर 67.88 प्रतिशत और महिला साक्षरता दर 40.61 प्रतिशत है।

इसी प्रकार वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान के धौलपुर जिले की कुल जनसंख्या 12,06,516 है । जिसमें से 6,53,647 पुरुष हैं,जबकि 5,52,869 महिलाएं हैं। धौलपुर जिले का औसत लिंगानुपात 846 है । जनगणना 2011 के अनुसार कुल जनसंख्या में से 20.5 फीसदी लोग शहरी क्षेत्रों में रहते हैं, जबकि 79.5 प्रतिशत लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। शहरी क्षेत्रों में औसत साक्षरता दर 72.7 प्रतिशत है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 68.1 फीसदी है। इसके अलावा धौलपुर जिले में शहरी क्षेत्रों का लिंगानुपात 864 है जबकि, ग्रामीण क्षेत्रों का लिंगानुपात 841 है। धौलपुर जिले की कुल साक्षरता दर 69.08 प्रतिशत है । धौलपुर जिले में पुरुष साक्षरता दर 66.66 प्रतिशत और महिला साक्षरता दर 44.74 प्रतिशत है।

आजादी के बाद वर्ष 1952 में देश में संसदीय लोकतंत्र की शुरुआत हुई। लेकिन तब बयाना से लेकर करौली-धौलपुर तक संसदीय क्षेत्र अस्तित्व नहीं था। वर्ष 1962 में अस्तित्व में आए बयाना संसदीय क्षेत्र में चुनाव हुए और टीकाराम पालीवाल स्वतंत्र पार्टी से पहले सांसद के रूप में विजयी घोषित हुए। तब से वर्ष 1989 में कांग्रेस की शांति पहाड़िया को अपवाद स्वरूप छोड़ दें, तो तब से लेकर वर्ष 2004 तक हुए बयाना लोकसभा सीट पर अंतिम संसदीय चुनाव तक कांग्रेस और भाजपा ने किसी महिला को अपना उम्मीदवार नहीं बनाया।

वर्ष 2008 में देश के साथ-साथ प्रदेश में परिसीमन हुआ और उसके बाद वर्ष 2009 में बयाना लोकसभा सीट बदलकर करौली-धौलपुर लोकसभा सीट हुई। नई संसदीय सीट बनने के बाद भी संसदीय राजनीति में आधी आबादी कही जाने वाली महिलाओं की भागीदारी को लेकर कांग्रेस और भाजपा के नजरिए में कोई बदलाव नहीं आया। तब भी कांग्रेस ने खिलाड़ी लाल बेरवा, जबकि भाजपा ने डॉ. मनोज राजोरिया को अपना उम्मीदवार बनाया।

इसके बाद वर्ष 2014 में भाजपा के डॉ. मनोज राजोरिया प्रत्याशी बनकर जीते। उन्होंने कांग्रेस के लखीराम बैरवा को हराया इसके बाद वर्ष 2019 के चुनाव में भी भाजपा ने डॉ. राजोरिया पर ही दांव लगाया, जबकि कांग्रेस के संजय जाटव मैदान में उतरे। बीते तीन संसदीय चुनाव में ना तो कांग्रेस ना तो भाजपा ने किसी भी महिला को अपना प्रत्याशी नहीं बनाया। नतीजतन इस लोकसभा क्षेत्र से महिला प्रत्याशियों के जीत के बाद संसद में दाखिले को लेकर सपना अधूरा ही रहा।

वर्ष के आखिर में देश की संसद ने जब महिला शक्ति वंदन अधिनियम पारित किया। तब राजनीति में “आधी आबादी” कही जाने वाली महिलाओं की सक्रिय भागीदारी पर चर्चा ने एक बार फिर से जोर पकड़ा। इसके बाद इस उम्मीद ने भी जोर पकड़ा, कि देर से ही सही अब करौली-धौलपुर सीट पर कांग्रेस और भाजपा कम से कम किसी न किसी महिला प्रत्याशी को अपनी कमान सौंपेंगे। पीएम नरेंद्र मोदी के विजन के मुताबिक भाजपा ने आंतरिक लोकतंत्र में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए नारी शक्ति वंदन अधिनियम के तर्ज पर काम करते हुए करौली-धौलपुर सीट पर पहली बार इंदू देवी जाटव को अपना प्रत्याशी बनाया। जिससे अब तक महिलाओं की नुमांइदगी नहीं मिलने का मिथक टूट गया। लेकिन देश में जातीय राजनीति की बात करने वाली कांग्रेस एक बार फिर से इस मामले में फिसड्डी साबित हुई और कांग्रेस ने महिला के बजाय एक बार फिर से भजनलाल जाटव के रूप में एक पुरुष प्रत्याशी पर ही भरोसा किया है।

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