‘न्याय चला निर्धन के द्वार’ को साकार करेगी राष्ट्रीय लोक अदालत

देहरादून । जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से देहरादून में आगामी नौ मार्च को राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया जाएगा़, जो ‘न्याय चला निर्धन के द्वार’ को साकार करेगी। इससे वादकारियों को तारीख पर तारीख से मुक्ति मिलेगी ही, समय और पैसे की बचत होने के साथ त्वरित न्याय भी सुलभ होगा। लोक अदालत का सबसे बड़ा गुण निःशुल्क व त्वरित न्याय है। ये विवादों के निपटारे का वैकल्पिक माध्यम है।’लोक अदालत’ जैसा कि नाम से स्पष्ट है, आपसी सुलह या बातचीत की एक प्रणाली है। यह एक ऐसा मंच है, जहां सौहार्दपूर्ण तरीके से मामला निपटाया जाता है। लोक अदालत वैकल्पिक विवाद समाधान के सबसे प्रभावशाली उपकरण के रूप में सामने आया है। लोक अदालत का मकसद नागरिक के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय को सुरक्षित करना है। साथ ही लोक अदालत वंचित और कमजोर वर्गों को निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करने की वकालत करता है और समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देता है। लोक अदालत भारतीय न्याय प्रणाली की उस पुरानी व्यवस्था को स्थापित करता है, जो प्राचीन भारत में प्रचलित थी। इसकी वैधता आधुनिक दिनों में भी प्रासंगिक है।नौ मार्च लगेगी लोक अदालत, अधिक से अधिक मामलों का होगा निस्तारण-जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश हर्ष यादव ने बताया कि लोक अदालत में फौजदारी के शमनीय वाद, धारा 138 एनआई. एक्ट से संबंधित वाद, मोटर दुर्घटना प्रतिकर संबंधित वाद, वैवाहिक-कुटुम्ब न्यायालयों के वाद (विवाह विच्छेद को छोड़कर), श्रम संबंधित वाद, भूमि अर्जन, दीवानी, राजस्व संबंधित वाद, वेतन-भत्तों एवं सेवानिवृत्ति से संबंधित वाद, धन वसूली, विद्युत एवं जल कर बिलों के मामले (अशमनीय मामलों को छोड़कर) समेत जो सुलह-समझौते के आधार पर निस्तारित हो सके। ऐसे अधिक से अधिक मामलों का प्राथमिकता पर निस्तारण किया जाएगा। उन्होंने कहा कि पक्षकार अपने मुकदमों के निस्तारण के लिए संबंधित न्यायालय एवं विभागीय अधिकारी से संपर्क कर मामलों का निस्तारण करा राष्ट्रीय लोक अदालत का लाभ उठाएं।लोक अदालत के लाभ– लोक अदालत में नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908, और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 जैसे प्रक्रियात्मक कानूनों का कोई सख्त अनुप्रयोग नहीं है, इसलिए लचीलेपन के कारण लोक अदालतें तीव्र हैं।- लोक अदालत द्वारा पारित एवार्ड को सिविल कोर्ट की डिग्री की तरह कानूनी मान्यता है। यह फैसले बाध्यकारी होते हैं और इनके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती।- लोक अदालत में कोई न्यायालय शुल्क नहीं है। यदि न्यायालय शुल्क का भुगतान पहले ही कर दिया गया है तो लोक अदालत में विवाद का निपटारा होने पर राशि वापस कर दी जाती है। यह गांधीवाद के सिद्धांत पर आधारित है।

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